सूरए अत तग़ाबुन इसमें एख़्तेलाफ है कि मक्का में नाजि़ल हुआ या मदीने में और इसकी अठारह (18) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा ही की तस्बीह करती है उसी की बादशाहत है और तारीफ़ उसी के लिए सज़ावार है और वही हर चीज़ पर कादिर है (1)
वही तो है जिसने तुम लोगों को पैदा किया कोई तुममें काफि़र है और कोई मोमिन और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसको देख रहा है (2)
उसी ने सारे आसमान व ज़मीन को हिकमत व मसलेहत से पैदा किया और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनायीं तो सबसे अच्छी सूरतें बनायीं और उसी की तरफ़ लौटकर जाना हैं (3)
जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है वह (सब) जानता है और जो कुछ तुम छुपा कर या खुल्लम खुल्ला करते हो उससे (भी) वाकिफ़ है और ख़ुदा तो दिल के भेद तक से आगाह है (4)
क्या तुम्हें उनकी ख़बर नहीं पहुँची जिन्होंने (तुम से) पहले कुफ्ऱ किया तो उन्होने अपने काम की सज़ा का (दुनिया में) मज़ा चखा और (आखि़रत में तो) उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (5)
ये इस वजह से कि उनके पास पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके थे तो कहने लगे कि क्या आदमी हमारे हादी बनेंगें ग़रज़ ये लोग काफि़र हो बैठे और मुँह फेर बैठे और ख़ुदा ने भी (उनकी) परवाह न की और ख़ुदा तो बे परवा सज़ावारे हम्द है (6)
काफि़रों का ख़्याल ये है कि ये लोग दोबारा न उठाए जाएँगे (ऐ रसूल) तुम कह दो वहाँ अपने परवरदिगार की क़सम तुम ज़रूर उठाए जाओगे फिर जो जो काम तुम करते रहे वह तुम्हें बता देगा और ये तो ख़ुदा पर आसान है (7)
तो तुम ख़ुदा और उसके रसूल पर उसी नूर पर ईमान लाओ जिसको हमने नाजि़ल किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (8)
जब वह क़यामत के दिन तुम सबको जमा करेगा फिर यही हार जीत का दिन होगा और जो शख़्स ख़ुदा पर ईमान लाए और अच्छा काम करे वह उससे उसकी बुराइयाँ दूर कर देगा और उसको (बेहिश्त में) उन बाग़ों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं वह उनमें अबादुल आबाद हमेशा रहेगा, यही तो बड़ी कामयाबी है (9)
और जो लोग काफि़र हैं और हमारी आयतों को झुठलाते रहे यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उसी में रहेंगे और वह क्या बुरा ठिकाना है (10)
जब कोई मुसीबत आती है तो ख़ुदा के इज़न से और जो शख़्स ख़ुदा पर ईमान लाता है तो ख़ुदा उसके क़ल्ब की हिदायत करता है और ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब आगाह है (11)
और ख़ुदा की इताअत करो और रसूल की इताअत करो फिर अगर तुमने मुँह फेरा तो हमारे रसूल पर सिर्फ़ पैग़ाम का वाज़ेए करके पहुँचा देना फ़र्ज़ है (12)
ख़ुदा (वह है कि) उसके सिवा कोई माबूद नहीं और मोमिनो को ख़ुदा ही पर भरोसा करना चाहिए (13)
ऐ ईमानदारों तुम्हारी बीवियों और तुम्हारी औलाद में से बाज़ तुम्हारे दुशमन हैं तो तुम उनसे बचे रहो और अगर तुम माफ़ कर दो दरगुज़र करो और बख़्ष दो तो ख़ुदा बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (14)
तुम्हारे माल और तुम्हारी औलादे बस आज़माइश है और ख़ुदा के यहाँ तो बड़ा अज्र (मौजूद) है (15)
तो जहाँ तक तुम से हो सके ख़ुदा से डरते रहो और (उसके एहकाम) सुनो और मानों और अपनी बेहतरी के वास्ते (उसकी राह में) ख़र्च करो और जो शख़्स अपने नफ़्स की हिरस से बचा लिया गया तो ऐसे ही लोग मुरादें पाने वाले हैं (16)
अगर तुम ख़ुदा को क़र्ज़े हसना दोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते दूना कर देगा और तुमको बख़्ष देगा और ख़ुदा तो बड़ा क़द्रदान व बुर्दबार है (17)
पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला ग़ालिब हिकमत वाला है (18)
सूरए अत तग़ाबुन ख़त्म