सूरए अल हदीद मदीना में नाजि़ल हुआ और इसकी उन्तीस (29) आयतें हैं
जो जो चीज़ सारे आसमान व ज़मीन मे है सब ख़ुदा की तसबीह करती है और वही ग़ालिब हिकमत वाला है (1)
सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही उसी की है वही जिलाता है वही मारता है और वही हर चीज़ पर कादिर है (2)
वही सबसे पहले और सबसे आखि़र है और (अपनी क़ूवतों से) सब पर ज़ाहिर और (निगाहों से) पोशीदा है और वही सब चीज़ों को जानता (3)
वह वही तो है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छहः दिन में पैदा किए फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ जो चीज़ ज़मीन में दाखिल होती है और जो उससे निकलती है और जो चीज़ आसमान से नाजि़ल होती है और जो उसकी तरफ़ चढ़ती है (सब) उसको मालूम है और तुम (चाहे) जहाँ कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है (4)
सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही ख़ास उसी की है और ख़ुदा ही की तरफ़ कुल उमूर की रूजू होती है (5)
वही रात को (घटा कर) दिन में दाखिल करता है तो दिन बढ़ जाता है और दिन (घटाकर) रात में दाखि़ल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिलों के भेदों तक से ख़ूब वाकि़फ़ है (6)
(लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और जिस (माल) में उसने तुमको अपना नायब बनाया है उसमें से से कुछ (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो तो तुम में से जो लोग ईमान लाए और (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते रहें उनके लिए बड़ा अज्र है (7)
और तुम्हें क्या हो गया है कि ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते हो हालाँकि रसूल तुम्हें बुला रहें हैं कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ और अगर तुमको बावर हो तो (यक़ीन करो कि) ख़ुदा तुम से (इसका) इक़रार ले चुका (8)
वही तो है जो अपने बन्दे (मोहम्मद) पर वाज़ेए व रौशन आयतें नाजि़ल करता है ताकि तुम लोगों को (कुफ्ऱ की) तारिक़ीयों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और बेशक ख़ुदा तुम पर बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है (9)
और तुमको क्या हो गया कि (अपना माल) ख़ुदा की राह में ख़र्च नहीं करते हालाँकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व वारिस ख़ुदा ही है तुममें से जिस शख़्स ने फ़तेह (मक्का) से पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया (और जिसने बाद में किया) वह बराबर नहीं उनका दर्जा उन लोगों से कहीं बढ़ कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जेहाद किया और (यूँ तो) ख़ुदा ने नेकी और सवाब का वायदा तो सबसे किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाकि़फ़ है (10)
कौन ऐसा है जो ख़ुदा को ख़ालिस नियत से क़र्जे हसना दे तो ख़ुदा उसके लिए (अज्र को) दूना कर दे और उसके लिए बहुत मुअज़्जि़ज़ सिला (जन्नत) तो है ही (11)
जिस दिन तुम मोमिन मर्द और मोमिन औरतों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर उनके आगे आगे और दाहिने तरफ़ चल रहा होगा तो उनसे कहा (जाएगा) तुमको बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है (12)
उस दिन मुनाफि़क मर्द और मुनाफि़क औरतें ईमानदारों से कहेंगे एक नज़र (शफ़क़्क़त) हमारी तरफ़ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल करें तो (उनसे) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वही) किसी और नूर की तलाष करो फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो रहमत है और बाहर की तरफ़ अज़ाब तो मुनाफि़क़ीन मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे (13)
(क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे तो मोमिनीन कहेंगे थे तो ज़रूर मगर तुम ने तो ख़ुद अपने आपको बला में डाला और (हमारे हक़ में गर्दिषों के) मुन्तजि़र हैं और (दीन में) शक किया किए और तुम्हें (तुम्हारी) तमन्नाओं ने धोखे में रखा यहाँ तक कि ख़ुदा का हुक्म आ पहुँचा और एक बड़े दग़ाबाज़ (शैतान) ने ख़ुदा के बारे में तुमको फ़रेब दिया (14)
तो आज न तो तुमसे कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न काफि़रों से तुम सबका ठिकाना (बस) जहन्नुम है वही तुम्हारे वास्ते सज़ावार है और (क्या) बुरी जगह है (15)
क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक़्त नहीं आया कि ख़ुदा की याद और क़ुरआन के लिए जो (ख़ुदा की तरफ़ से) नाजि़ल हुआ है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरेत, इन्जील) दी गयी थी तो (जब) एक ज़माना दराज़ गुज़र गया तो उनके दिल सख़्त हो गए और इनमें से बहुतेरे बदकार हैं (16)
जान रखो कि ख़ुदा ही ज़मीन को उसके मरने (उफ़तादा होने) के बाद जि़न्दा (आबाद) करता है हमने तुमसे अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ खोल खोल कर बयान कर दी हैं ताकि तुम समझो (17)
बेशक ख़ैरात देने वाले मर्द और ख़ैरात देने वाली औरतें और (जो लोग) ख़ुदा की नीयत से ख़ालिस क़र्ज़ देते हैं उनको दोगुना (अज्र) दिया जाएगा और उनका बहुत मुअजि़ज़ सिला (जन्नत) तो है ही (18)
और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए यही लोग अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीक़ों और शहीदों के दरजे में होंगे उनके लिए उन्ही (सिद्दीकों और शहीदों) का अज्र और उन्हीं का नूर होगा और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया वही लोग जहन्नुमी हैं (19)
जान रखो कि दुनियावी जि़न्दगी महज़ खेल और तमाशा और ज़ाहिरी ज़ीनत (व आसाइश) और आपस में एक दूसरे पर फ़ख्ऱ करना और माल और औलाद की एक दूसरे से ज़्यादा ख़्वाहिशष है (दुनयावी जि़न्दगी की मिसाल तो) बारिश की सी मिसाल है जिस (की वजह) से किसानों की खेती (लहलहाती और) उनको ख़ुश कर देती थी फिर सूख जाती है तो तू उसको देखता है कि ज़र्द हो जाती है फिर चूर चूर हो जाती है और आखि़रत में (कुफ्फ़ार के लिए) सख़्त अज़ाब है और (मोमिनों के लिए) ख़ुदा की तरफ़ से बख़शिश और ख़ुशनूदी और दुनयावी जि़न्दगी तो बस फ़रेब का साज़ो सामान है (20)
तुम अपने परवरदिगार के (सबब) बख़शिश की और बेहिश्त की तरफ़ लपक के आगे बढ़ जाओ जिसका अज्र आसमान और ज़मीन के अज्र के बराबर है जो उन लोगों के लिए तैयार की गयी है जो ख़ुदा पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं ये ख़ुदा का फज़ल है जिसे चाहे अता करे और ख़ुदा का फज़ल (व क़रम) तो बहुत बड़ा है (21)
जितनी मुसीबतें रूए ज़मीन पर और ख़ुद तुम लोगों पर नाजि़ल होती हैं (वह सब) क़ब्ल इसके कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौह महफूज़) में (लिखी हुयी) हैं बेशक ये ख़ुदा पर आसान है (22)
ताकि जब कोई चीज़ तुमसे जाती रहे तो तुम उसका रंज न किया करो और जब कोई चीज़ (नेअमत) ख़ुदा तुमको दे तो उस पर न इतराया करो और ख़ुदा किसी इतराने वाले शेख़ीबाज़ को दोस्त नहीं रखता (23)
जो ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरे लोगों को भी बुख़्ल करना सिखाते हैं और जो शख़्स (इन बातों से) रूगरदानी करे तो ख़ुदा भी बेपरवा सज़ावारे हम्दोसना है (24)
हमने यक़ीनन अपने पैग़म्बरों को वाज़े व रौशन मोजिज़े देकर भेजा और उनके साथ किताब और (इन्साफ़ की) तराज़ू नाजि़ल किया ताकि लोग इन्साफ़ पर क़ायम रहे और हम ही ने लोहे को नाजि़ल किया जिसके ज़रिए से सख़्त लड़ाई और लोगों के बहुत से नफ़े (की बातें) हैं और ताकि ख़ुदा देख ले कि बेदेखे भाले ख़ुदा और उसके रसूलों की कौन मदद करता है बेशक ख़ुदा बहुत ज़बरदस्त ग़ालिब है (25)
और बेशक हम ही ने नूह और इबराहीम को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा और उनही दोनों की औलाद में नबूवत और किताब मुक़र्रर की तो उनमें के बाज़ हिदायत याफ़्ता हैं और उन के बहुतेरे बदकार हैं (26)
फिर उनके पीछे ही उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इन्जील अता की और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की उनके दिलों में शफ़क़्क़त और मेहरबानी डाल दी और रहबानियत (लज़्ज़ात से किनाराकशी) उन लोगों ने ख़ुद एक नयी बात निकाली थी हमने उनको उसका हुक़्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (ख़ुद ईजाद किया) तो उसको भी जैसा बनाना चाहिए था न बना सके तो जो लोग उनमें से इमान लाए उनको हमने उनका अज्र दिया उनमें के बहुतेरे तो बदकार ही हैं (27)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और उसके रसूल (मोहम्मद) पर ईमान लाओ तो ख़ुदा तुमको अपनी रहमत के दो हिस्से अज्र अता फ़रमाएगा और तुमको ऐसा नूर इनायत फ़रमाएगा जिस (की रौशनी) में तुम चलोगे और तुमको बख़्ष भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (28)
(ये इसलिए कहा जाता है) ताकि एहले किताब ये न समझें कि ये मोमिनीन ख़ुदा के फज़ल (व क़रम) पर कुछ भी क़ुदरत नहीं रखते और ये तो यक़ीनी बात है कि फज़ल ख़ुदा ही के कब्ज़े में है वह जिसको चाहे अता फरमाए और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व क़रम) का मालिक है (29)
सूरए अल हदीद ख़त्म