बेषक ख़़ुदा बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है कि (तुम्हारी नाफरमानी पर भी नेअमत देता है) (19)
और जो कुछ तुम छिपाकर करते हो और जो कुछ ज़ाहिर करते हो (ग़रज़) ख़ुदा (सब कुछ) जानता है और (ये कुफ्फार) ख़़ुदा को छोड़कर जिन लोगों को (हाजत के वक़्त) पुकारते हैं वह कुछ भी पैदा नहीं कर सकते (20)
(बल्कि) वह ख़ुद दूसरों के बनाए हुए मुर्दे बेजान हैं और इतनी भी ख़बर नहीं कि कब (क़यामत) होगी और कब मुर्दे उठाए जाएगें (21)
(फिर क्या काम आएगी) तुम्हारा परवरदिगार (यकता खुदा है तो जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते उनके दिल ही (इस वजह के हैं कि हर बात का) इन्कार करते हैं और वह बड़े मग़रुर हैं (22)
ये लोग जो कुछ छिपा कर करते हैं और जो कुछ ज़ाहिर बज़ाहिर करते हैं (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ज़रुर जानता है वह हरगिज़ तकब्बुर करने वालों को पसन्द नहीं करता (23)
और जब उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो वह कहते हैं कि (अजी कुछ भी नहीं बस) अगलो के किस्से हैं (24)
(उनको बकने दो ताकि क़यामत के दिन) अपने (गुनाहों) के पूरे बोझ और जिन लोगों को उन्होंने बे समझे बूझे गुमराह किया है उनके (गुनाहों के) बोझ भी उन्हीं को उठाने पड़ेगें ज़रा देखो तो कि ये लोग कैसा बुरा बोझ अपने ऊपर लादे चले जा रहें हैं (25)
बेशक जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी मक्कारियाँ की थीं तो (ख़ुदा का हुक्म) उनके ख़्यालात की इमारत की जड़ की तरफ से आ पड़ा (पस फिर क्या था) इस ख़्याली इमारत की छत उन पर उनके ऊपर से धम से गिर पड़ी (और सब ख़्याल हवा हो गए) और जिधर से उन पर अज़ाब आ पहुँचा उसकी उनको ख़बर तक न थी (26)
(फिर उसी पर इकतिफा नहीं) उसके बाद क़यामत के दिन ख़ुदा उनको रुसवा करेगा और फरमाएगा कि (अब बताओ) जिसको तुमने मेरा शरीक बना रखा था और जिनके बारे में तुम (इमानदारों से) झगड़ते थे कहाँ हैं (वह तो कुछ जवाब देगें नहीं मगर) जिन लोगों को (ख़ुदा की तरफ से) इल्म दिया गया है कहेगें कि आज के दिन रुसवाई और ख़राबी (सब कुछ) काफिरों पर ही है (27)
वह लोग हैं कि जब फरिश्ते उनकी रुह क़ब्ज़ करने लगते हैं (और) ये लोग (कुफ्र करके) आप अपने ऊपर सितम ढ़ाते रहे तो इताअत पर आमादा नज़र आते हैं और (कहते हैं कि) हम तो (अपने ख़्याल में) कोई बुराई नहीं करते थे (तो फरिष्ते कहते हैं) हाँ जो कुछ तुम्हारी करतूते थी ख़ुदा उससे खूब अच्छी तरह वाकि़फ हैं (28)
(अच्छा तो लो) जहन्नुम के दरवाज़ों में दाखि़ल हो और इसमें हमेषा रहोगे ग़रज़ तकब्बुर करने वालो का भी क्या बुरा ठिकाना है (29)
और जब परहेज़गारों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो बोल उठते हैं सब अच्छे से अच्छा जिन लोगों ने नेकी की उनके लिए इस दुनिया में (भी) भलाई (ही भलाई) है और आखि़रत का घर क्या उम्दा है (30)
सदा बहार (हरे भरे) बाग़ हैं जिनमें (वे तकल्लुफ) जा पहुँचेगें उनके नीचे नहरें जारी होंगी और ये लोग जो चाहेगें उनके लिए मुयय्या (मौजू़द) है यूँ ख़ुदा परहेज़गारों (को उनके किए) की जज़ा अता फरमाता है (31)
(ये) वह लोग हैं जिनकी रुहें फरिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करतें हैं कि वह (नजासते कुफ्र से) पाक व पाकीज़ा होते हैं तो फरिश्ते उनसे (निहायत तपाक से) कहते है सलामुन अलैकुम जो नेकियाँ दुनिया में तुम करते थे उसके सिले में जन्नत में (बेतकल्लुफ) चले जाओ (32)
(ऐ रसूल) क्या ये (एहले मक्का) इसी बात के मुन्तिज़र है कि उनके पास फरिश्ते (क़ब्ज़े रुह को) आ ही जाएँ या (उनके हलाक करने को) तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब ही आ पहुँचे जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं वह ऐसी बातें कर चुके हैं और ख़ुदा ने उन पर (ज़रा भी) जुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद कुफ्ऱ की वजह से अपने ऊपर आप जुल्म करते रहे (33)
फिर जो जो करतूतें उनकी थी उसकी सज़ा में बुरे नतीजे उनको मिले और जिस (अज़ाब) की वह हँसी उड़ाया करते थे उसने उन्हें (चारो तरफ से) घेर लिया (34)
और मुशरेकीन कहते हैं कि अगर ख़ुदा चाहता तो न हम ही उसके सिवा किसी और चीज़ की इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बग़ैर उस (की मर्ज़ी) के किसी चीज़ को हराम कर बैठते जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं वह भी ऐसे (हीला हवाले की) बातें कर चुके हैं तो (कहा करें) पैग़म्बरों पर तो उसके सिवा कि एहकाम को साफ साफ पहुँचा दे और कुछ भी नहीं (35)
और हमने तो हर उम्मत में एक (न एक) रसूल इस बात के लिए ज़रुर भेजा कि लोगों ख़ुदा की इबादत करो और बुतों (की इबादत) से बचे रहो ग़रज़ उनमें से बाज़ की तो ख़ुदा ने हिदायत की और बाज़ के (सर) पर गुमराही सवार हो गई तो ज़रा तुम लोग रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (पैग़म्बराने ख़़ुदा के) झुठलाने वालों को क्या अन्जाम हुआ (36)
(ऐ रसूल) अगर तुमको इन लोगों के राहे रास्त पर जाने का हौका है (तो बे फायदा) क्योंकि ख़ुदा तो हरगिज़ उस शख़्स की हिदायत नहीं करेगा जिसको (नाजि़ल होने की वजह से) गुमराही में छोड़ देता है और न उनका कोई मददगार है (37)
(कि अज़ाब से बचाए) और ये कुफ्फार ख़ुदा की जितनी क़समें उनके इमकान में तुम्हें खा (कर कहते) हैं कि जो शख़्स मर जाता है फिर उसको ख़ुदा दोबारा जि़न्दा नहीं करेगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हाँ ज़रुर ऐसा करेगा इस पर अपने वायदे की (वफा) लाजि़म व ज़रुरी है मगर बहुतेरे आदमी नहीं जानते हैं (38)
(दोबारा जि़न्दा करना इसलिए ज़रुरी है) कि जिन बातों पर ये लोग झगड़ा करते हैं उन्हें उनके सामने साफ वाज़ेए कर देगा और ताकि कुफ्फार ये समझ लें कि ये लोग (दुनिया में) झूठे थे (39)
हम जब किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करते हैं तो हमारा कहना उसके बारे में इतना ही होता है कि हम कह देते हैं कि ‘हो जा’ बस फौरन हो जाती है (तो फिर मुर्दों का जिलाना भी कोई बात है) (40)
और जिन लोगों ने (कुफ़्फ़ार के ज़ुल्म पर ज़ुल्म सहने के बाद ख़ुदा की खुषी के लिए घर बार छोड़ा हिजरत की हम उनको ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह बिठाएँगें और आखि़रत की जज़ा तो उससे कहीं बढ़ कर है काश ये लोग जिन्होंने ख़ुदा की राह में सखि़्तयों पर सब्र किया (41)
और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आखि़रत का सवाब) जानते होते (42)
और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना बनाकर भेजा किए जिन की तरफ हम वहीं भेजते थे तो (तुम एहले मक्का से कहो कि) अगर तुम खुद नहीं जानते हो तो एहले जि़क्र (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ (43)
और तुम्हारे पास क़ुरान नाजि़ल किया है ताकि जो एहकाम लोगों के लिए नाजि़ल किए गए है तुम उनसे साफ साफ बयान कर दो ताकि वह लोग खुद से कुछ ग़ौर फिक्र करें (44)
तो क्या जो लोग बड़ी बड़ी मक्कारियाँ (शिर्क वग़ैरह) करते थे (उनको इस बात का इत्मिनान हो गया है (और मुत्तलिक़ ख़ौफ नहीं) कि ख़ुदा उन्हें ज़मीन में धसा दे या ऐसी तरफ से उन पर अज़ाब आ पहुँचे कि उसकी उनको ख़बर भी न हो (45)
उनके चलते फिरते (ख़ुदा का अज़ाब) उन्हें गिरफ्तार करे तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते (46)
या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करे इसमें तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ रहम वाला है (47)
क्या उन लोगों ने ख़ुदा की मख़लूक़ात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिसका साया (कभी) दाहिनी तरफ और कभी बायी तरफ पलटा रहता है कि (गोया) ख़ुदा के सामने सर सजदा है और सब इताअत का इज़हार करते हैं (48)
और जितनी चीज़ें (चादँ सूरज वग़ैरह) आसमानों में हैं और जितने जानवर ज़मीन में हैं सब ख़ुदा ही के आगे सर सजूद हैं और फरिश्ते तो (है ही) और वह हुक्में ख़ुदा से सरकशी नहीं करते (49) (सजदा)
और अपने परवरदिगार से जो उनसे (कहीं) बरतर (बड़ा) व आला है डरते हैं और जो हुक्में दिया जाता है फौरन बजा लाते हैं (50)
और ख़ुदा ने फरमाया था कि दो दो माबूद न बनाओ माबूद तो बस वही यकता ख़ुदा है सिर्फ मुझी से डरते रहो (51)
और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फरमाबरदारी हमेशा उसी को लाजि़म (जरूरी) है तो क्या तुम लोग ख़ुदा के सिवा (किसी और से भी) डरते हो (52)
और जितनी नेअमतें तुम्हारे साथ हैं (सब ही की तरफ से हैं) फिर जब तुमको तकलीफ छू भी गई तो तुम उसी के आगे फरियाद करने लगते हो (53)
फिर जब वह तुमसे तकलीफ को दूर कर देता है तो बस फौरन तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार को शरीक ठहराते हैं (54)
ताकि जो (नेअमतें) हमने उनको दी है उनकी नाशुक्री करें तो (ख़ैर दुनिया में चन्द रोज़ चैन कर लो फिर तो अनक़रीब तुमको मालूम हो जाएगा (55)
और हमने जो रोज़ी उनको दी है उसमें से ये लोग उन बुतों का हिस्सा भी क़रार देते है जिनकी हक़ीकत नहीं जानते तो ख़ुदा की (अपनी) कि़स्म जो इफ़तेरा परदाजि़याँ तुम करते थे (क़यामत में) उनकी बाज़पुर्स (पूछ गछ) तुम से ज़रुर की जाएगी (56)
और ये लोग ख़ुदा के लिए बेटियाँ तजवीज़ करते हैं (सुबान अल्लाह) वह उस से पाक व पाकीज़ा है (57)
और अपने लिए (बेटे) जो मरग़ूब (दिल पसन्द) हैं और जब उसमें से किसी एक को लड़की पैदा होने की जो खुशख़बरी दीजिए रंज के मारे मुँह काला हो जाता है (58)
और वह ज़हर का सा घूँट पीकर रह जाता है (बेटी की) जिसकी खुशखबरी दी गई है अपनी क़ौम के लोगों से छिपा फिरता है (और सोचता है) कि क्या इसको जि़ल्लत उठाके जि़न्दा रहने दे या (जि़न्दा ही) इसको ज़मीन में गाड़ दे-देखो तुम लोग किस क़दर बुरा एहकाम (हुक्म) लगाते हैं (59)
बुरी (बुरी) बातें तो उन्हीं लोगों के लिए ज़्यादा मुनासिब हैं जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते और ख़ुदा की शान के लायक़ तो आला सिफते (बहुत बड़ी अच्छाइया) हैं और वही तो ग़ालिब है (60)
और अगर (कहीं) ख़ुदा अपने बन्दों की नाफरमानियों की गिरफ़त करता तो रुए ज़मीन पर किसी एक जानदार को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुक़र्रर वक़्त तक उन सबको मोहलत देता है फिर जब उनका (वह) वक़्त आ पहुँचेगा तो न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (61)
और ये लोग खुद जिन बातों को पसन्द नहीं करते उनको ख़ुदा के वास्ते क़रार देते हैं और अपनी ही ज़बान से ये झूठे दावे भी करते हैं कि (आखि़रत में भी) उन्हीं के लिए भलाई है (भलाई तो नहीं मगर) हाँ उनके लिए जहन्नुम की आग ज़रुरी है और यही लोग सबसे पहले (उसमें) झोंके जाएँगें (62)
(ऐ रसूल) ख़ुदा की (अपनी) कसम तुमसे पहले उम्मतों के पास बहुतेरे पैग़म्बर भेजे तो शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया तो वही (शैतान) आज भी उन लोगों का सरपरस्त बना हुआ है हालाँकि उनके वास्ते दर्दनाक अज़ाब है (63)
और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) तो इसी लिए नाजि़ल की ताकि जिन बातों में ये लोग बाहम झगड़ा किए हैं उनको तुम साफ साफ बयान करो (और यह किताब) इमानदारों के लिए तो (अज़सरतापा) हिदायत और रहमत है (64)
और ख़ुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया तो उसके ज़रिए ज़मीन को मुर्दा होने के बाद जि़न्दा (षादाब) (हरी भरी) किया क्या कुछ शक नहीं कि इसमें जो लोग बसते हैं उनके वास्ते (कु़दरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है (65)
और इसमें शक नहीं कि चैपायों में भी तुम्हारे लिए (इबरत की बात) है कि उनके पेट में ख़ाक, बला, गोबर और ख़ून (जो कुछ भरा है) उसमें से हमे तुमको ख़ालिस दूध पिलाते हैं जो पीने वालों के लिए खुशगवार है (66)
और इसी तरह खुरमें और अंगूर के फल से (हम तुमको शीरा पिलाते हैं) जिसकी (कभी तो) तुम शराब बना लिया करते हो और कभी अच्छी रोज़ी (सिरका वगै़रह) इसमें शक नहीं कि इसमें भी समझदार लोगों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बड़ी निशानी है (67)
और (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तू पहाड़ों और दरख़्तों और ऊँची ऊँची ट्ट्टियाँ (और मकानात पाट कर) बनाते हैं (68)
उनमें अपने छत्ते बना फिर हर तरह के फलों (के पूर से) (उनका अकऱ्) चूस कर फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताबेदारी के साथ चली मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख़्तलिफ रंग होते
हैं इसमें लोगों (के बीमारियों) की शिफ़ा (भी) है इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर व फि़क्र करने वालों के वास्ते (क़ुदरते ख़ुदा की बहुत बड़ी निशानी है) (69)
और ख़ुदा ही ने तुमको पैदा किया फिर वही तुमको (दुनिया से) उठा लेगा और तुममें से बाज़ ऐसे भी हैं जो ज़लील जि़न्दगी (सख़्त बुढ़ापे) की तरफ लौटाए जाते हैं (बहुत कुछ) जानने के बाद (ऐसे सड़ीले हो गए कि) कुछ नहीं जान सके बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता और (हर तरह की) कुदरत रखता है (70)
और ख़ुदा ही ने तुममें से बाज़ को बाज़ पर रिज़क (दौलत में) तरजीह दी है फिर जिन लोगों को रोज़ी ज़्यादा दी गई है वह लोग अपनी रोज़ी में से उन लोगों को जिन पर उनका दस्तरस (इख़्तेयार) है (लौन्डी ग़ुलाम वग़ैरह) देने वाला नहीं (हालाँकि इस माल में तो सब के सब मालिक गुलाम वग़ैरह) बराबर हैं तो क्या ये लोग ख़ुदा की नेअमत के मुन्किर हैं (71)
और ख़ुदा ही ने तुम्हारे लिए बीबियाँ तुम ही में से बनाई और उसी ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी बीवियों से बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रोज़ी खाने को दी तो क्या ये लोग बिल्कुल बातिल (सुल्तान बुत वग़ैरह) पर इमान रखते हैं और ख़ुदा की नेअमत (वहदानियत वग़ैरह से) इन्कार करते हैं (72)
और ख़ुदा को छोड़कर ऐसी चीज़ की परसतिश करते हैं जो आसमानों और ज़मीन में से उनको रिज़क़ देने का कुछ भी न एख़्तियार रखते हैं और न कुदरत हासिल कर सकते हैं (73)
तो तुम (दुनिया के लोगों पर कयास करके ख़ुद) मिसालें न गढ़ो बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता है और तुम नहीं जानते (74)
एक मसल ख़ुदा ने बयान फरमाई कि एक ग़ुलाम है जो दूसरे के कब्जे़ में है (और) कुछ भी एख़्तियार नहीं रखता और एक शख़्स वह है कि हमने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (खासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उसमें से छिपा के दिखा के (ग़रज़ हर तरह ख़ुदा की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनो बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह (कि वह भी उसके मुक़र्रर हैं) मगर उनके बहुतेरे (इतना भी) नहीं जानते (75)
और ख़ुदा एक दूसरी मसल बयान फरमाता है दो आदमी हैं कि एक उनमें से बिल्कुल गूँगा उस पर गुलाम जो कुछ भी (बात वग़ैरह की) कुदरत नहीं रखता और (इस वजह से) वह अपने मालिक को दूभर हो रहा है कि उसको जिधर भेजता है (ख़ैर से) कभी भलाई नहीं लाता क्या ऐसा ग़ुलाम और वह शख़्स जो (लोगों को) अदल व मियाना रवी का हुक्म करता है वह खुद भी ठीक सीधी राह पर क़ायम है (दोनों बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) (76)
और सारे आसमान व ज़मीन की ग़ैब की बातें ख़ुदा ही के लिए मख़सूस हैं और ख़ुदा क़यामत का वाकेए होना तो ऐसा है जैसे पलक का झपकना बल्कि इससे भी जल्दी बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ुदरत कामेला रखता है (77)
और ख़ुदा ही ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से निकाला (जब) तुम बिल्कुल नासमझ थे और तुम को कान दिए और आँखें (अता की) दिल (इनायत किए) ताकि तुम शुक्र करो (78)
क्या उन लोगों ने परिन्दों की तरफ ग़ौर नहीं किया जो आसमान के नीचे हवा में घिरे हुए (उड़ते रहते हैं) उनको तो बस ख़ुदा ही (गिरने से ) रोकता है बेशक इसमें भी (कुदरते ख़ुदा की) इमानदारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं (79)
और ख़ुदा ही ने तुम्हारे घरों को तुम्हारा ठिकाना क़रार दिया और उसी ने तुम्हारे वास्ते चैपायों की खालों से तुम्हारे लिए (हलके फुलके) डेरे (ख़ेमे) बना जिन्हें तुम हलका पाकर अपने सफर और हजर (ठहरने) में काम लाते हो और इन चारपायों की ऊन और रुई और बालो से एक वक़्त ख़ास (क़यामत तक) के लिए तुम्हारे बहुत से असबाब और अबकार आमद (काम की) चीज़े बनाई (80)
और ख़ुदा ही ने तुम्हारे आराम के लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों के साए बनाए और उसी ने तुम्हारे (छिपने बैठने) के वास्ते पहाड़ों में घरौन्दे (ग़ार वग़ैरह) बनाए और उसी ने तुम्हारे लिए कपड़े बनाए जो तुम्हें (सर्दी) गर्मी से महफूज़ रखें और (लोहे) के कुर्ते जो तुम्हें हाथियों की ज़द (मार) से बचा लें यूँ ख़ुदा अपनी नेअमत तुम पर पूरी करता है (81)
तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है (82)
(बस) ये लोग ख़ुदा की नेअमतों को पहचानते हैं फिर (जानबुझ कर) उनसे मुकर जाते हैं और इन्हीं में से बहुतेरे नाशुक्रे हैं (83)
और जिस दिन हम एक उम्मत में से (उसके पैग़म्बरों को) गवाह बनाकर क़ब्रों से उठा खड़ा करेगे फिर तो काफिरों को न (बात करने की) इजाज़त दी जाएगी और न उनका उज्र (जवाब) ही सुना जाएगा (84)
और जिन लोगों ने (दुनिया में) शरारतें की थी जब वह अज़ाब को देख लेगें तो उनके अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत ही दी जाएगी (85)
और जिन लोगों ने दुनिया में ख़ुदा का शरीक (दूसरे को) ठहराया था जब अपने (उन) शरीकों को (क़यामत में) देखेंगे तो बोल उठेगें कि ऐ हमारे परवरदिगार यही तो हमारे शरीक हैं जिन्हें हम (मुसीबत) के वक़्त तुझे छोड़ कर पुकारा करते थे तो वह शरीक उन्हीं की तरफ बात को फेंक मारेगें कि तुम निरे झूठे हो (86)
और उस दिन ख़ुदा के सामने सर झुका देंगे और जो इफ़तेरा परदाजि़याँ दुनिया में किया करते थे उनसे गायब हो जाएँगें (87)
जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और लोगों को ख़ुदा की राह से रोका उनके फ़साद वाले कामों के बदले में उनके लिए हम अज़ाब पर अज़ाब बढ़ाते जाएँगें (88)
और वह दिन याद करो जिस दिन हम हर एक गिरोह में से उन्हीं में का एक गवाह उनके मुक़ाबिल ला खड़ा करेगें और (ऐ रसूल) तुम को उन लोगों पर (उनके) सामने गवाह बनाकर ला खड़ा करेंगें और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) नाजि़ल की जिसमें हर चीज़ का (शाफी) बयान है और मुसलमानों के लिए (सरमापा) हिदायत और रहमत और खुशख़बरी है (89)
इसमें शक नहीं कि ख़ुदा इन्साफ और (लोगों के साथ) नेकी करने और क़राबतदारों को (कुछ) देने का हुक्म करता है और बदकारी और नाशएस्ता हरकतों और सरकशी करने को मना करता है (और) तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम नसीहत हासिल करो (90)
और जब तुम लोग बाहम क़ौल व क़रार कर लिया करो तो ख़ुदा के एहदो पैमान को पूरा करो और क़समों को उनके पक्का हो जाने के बाद न तोड़ा करो हालाँकि तुम तो ख़ुदा को अपना ज़ामिन बना चुके हो जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे ज़रुर जानता है (91)
और तुम लोग (क़समों के तोड़ने में) उस औरत के ऐसे न हो जो अपना सूत मज़बूत कातने के बाद टुकड़े टुकड़े करके तोड़ डाले कि अपने एहदो को आपस में उस बात की मक्कारी का ज़रिया बनाने लगो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से (ख़्वामख़वाह) बढ़ जाए इससे बस ख़ुदा तुमको आज़माता है (कि तुम किसी की पालाइश करते हो) और जिन बातों में तुम दुनिया में झगड़ते थे क़यामत के दिन ख़ुदा खुद तुम से साफ साफ बयान कर देगा (92)
और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सबको एक ही (किस्म के) गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसकी चाहता है हिदायत करता है और जो कुछ तुम लोग दुनिया में किया करते थे उसकी बाज़ पुर्स (पुछ गछ) तुमसे ज़रुर की जाएगी (93)
और तुम अपनी क़समों को आपस में के फसाद का सबब न बनाओ ताकि (लोगों के) क़दम जमने के बाद (इस्लाम से) उखड़ जाएँ और फिर आखि़रकार क़यामत में तुम्हें लोगों को ख़ुदा की राह से रोकने की पादाष (रोकने के बदले) में अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे वास्ते बड़ा सख़्त अज़ाब हो (94)
और ख़ुदा के एहदो पैमान के बदले थोड़ी क़ीमत (दुनयावी नफा) न तो अगर तुम जानते (बूझते) हो तो (समझ लो कि) जो कुछ ख़ुदा के पास है वह उससे कहीं बेहतर है (95)
(क्योंकि माल दुनिया से) जो कुछ तुम्हारे पास है एक न एक दिन ख़त्म हो जाएगा और (अज्र) ख़ुदा के पास है वह हमेशा बाक़ी रहेगा (96)
और जिन लोगों ने दुनिया में सब्र किया था उनको (क़यामत में) उनके कामों का हम अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता करेंगें (96)
मर्द हो या औरत जो शख़्स नेक काम करेगा और वह इमानदार भी हो तो हम उसे (दुनिया में भी) पाक व पाकीज़ा जिन्दगी बसर कराएँगें और (आखि़रत में भी) जो कुछ वह करते थे उसका अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता फरमाएँगें (97)
और जब तुम क़ुरान पढ़ने लगो तो शैतान मरदूद (के वसवसो) से ख़ुदा की पनाह तलब कर लिया करो (98)
इसमें शक नहीं कि जो लोग इमानदार हैं और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं उन पर उसका क़ाबू नहीं चलता (99)
उसका क़ाबू चलता है तो बस उन्हीं लोगों पर जो उसको दोस्त बनाते हैं और जो लोग उसको ख़ुदा का शरीक बनाते हैं (100)
और (ऐ रसूल) हम जब एक आयत के बदले दूसरी आयत नाजि़ल करते हैं तो हालाँकि ख़ुदा जो चीज़ नाजि़ल करता है उस (की मसलहतों) से खूब वाकि़फ है मगर ये लोग (तुम को) कहने लगते हैं कि तुम बस बिल्कुल मुज़तरी (ग़लत बयान करने वाले) हो बल्कि खुद उनमें के बहुतेरे (मसालेह को) नहीं जानते (101)
(ऐ रसूल) तुम (साफ) कह दो कि इस (क़ुरान) को तो रुहलकुदूस (जिबरील) ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ नाजि़ल किया है ताकि जो लोग इमान ला चुके हैं उनको साबित क़दम रखे और मुसलमानों के लिए (अज़सरतापा) खुशखबरी है (102)
और (ऐ रसूल) हम तहक़ीक़तन जानते हैं कि ये कुफ्फार तुम्हारी निस्बत कहा करते है कि उनको (तुम को) कोई आदमी क़ुरान सिखा दिया करता है हालॅाकि बिल्कुल ग़लत है क्योंकि जिस शख़्स की तरफ से ये लोग निस्बत देते हैं उसकी ज़बान तो अजमी है और ये तो साफ साफ अरबी ज़बान है (103)
इसमें तो शक ही नहीं कि जो लोग ख़ुदा की आयतों पर इमान नहीं लाते ख़ुदा भी उनको मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (104)
झूठ बोहतान तो बस वही लोग बांधा करते हैं जो खुदा की आयतों पर इमान नहीं रखतें (105)
और हक़ीक़त अम्र ये है कि यही लोग झूठे हैं उस शख़्स के सिवा जो (कलमाए कुफ्र) पर मजबूर किया जाए और उसका दिल इमान की तरफ से मुतमइन हो जो शख़्स भी इमान लाने के बाद कुफ्र एख़्तियार करे बल्कि खूब सीना कुशादा (जी खोलकर) कुफ्र करे तो उन पर ख़ुदा का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है (106)
ये इस वजह से कि उन लोगों ने दुनिया की चन्द रोज़ा जि़न्दगी को आखि़रत पर तरजीह दी और इस वजह से की ख़ुदा काफिरों को हरगिज़ मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (107)
ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर खु़दा ने अलामात मुक़र्रर कर दी है (108)
(कि इमान न लाएँगे) और यही लोग (इस सिरे के) बेखबर हैं कुछ शक नहीं कि यही लोग आखि़रत में भी यक़ीनन घाटा उठाने वाले हैं (109)
फिर इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों को जिन्होने मुसीबत में मुब्तिला होने क बाद घर बार छोडे़ फिर (ख़ुदा की राह में) जिहाद किए और तकलीफों पर सब्र किया इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इन सब बातों के बाद अलबत्ता बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (110)
और (उस दिन को याद) करो जिस दिन हर शख़्स अपनी ज़ात के बारे में झगड़ने को आ मौजूद होगा (111)
और हर शख़्स को जो कुछ भी उसने किया था उसका पूरा पूरा बदला मिलेगा और उन पर किसी तरह का जु़ल्म न किया जाएगा ख़ुदा ने एक गाँव की मसल बयान फरमाई जिसके रहने वाले हर तरह के चैन व इत्मेनान में थे हर तरफ से बाफराग़त (बहुत ज़्यादा) उनकी रोज़ी उनके पास आई थी फिर उन लोगों ने ख़ुदा की नूअमतों की नाशुक्री की तो ख़ुदा ने उनकी करतूतों की बदौलत उनको मज़ा चखा दिया (112)
कि भूक और ख़ौफ को ओढ़ना (बिछौना) बना दिया और उन्हीं लोगों में का एक रसूल भी उनके पास आया तो उन्होंने उसे झुठलाया (113)
फिर अज़ाब (ख़ुदा) ने उन्हें ले डाला और वह ज़ालिम थे ही तो ख़ुदा ने जो कुछ तुम्हें हलाल तय्यब (ताहिर) रोज़ी दी है उसको (शक़ से) खाओ और अगर तुम खुदा ही की परसतिश (का दावा करते हो) (114)
उसकी नेअमत का शुक्र अदा किया करो तुम पर उसने मुरदार और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर (ज़बाह के वक़्त) ख़ुदा के सिवा (किसी) और का नाम लिया जाए हराम किया है फिर जो शख़्स (मारे भूक के) मजबूर हो ख़ुदा से सरतापी (नाफरमानी) करने वाला हो और न (हद ज़रुरत से) बढ़ने वाला हो और (हराम खाए) तो बेशक ख़ुदा बख़्शने वाला मेहरबान है (115)
और झूट मूट जो कुछ तुम्हारी ज़बान पर आए (बे समझे बूझे) न कह बैठा करों कि ये हलाल है और हराम है ताकि इसकी बदौलत ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाँधने लगो इसमें शक नहीं कि जो लोग ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाधते हैं वह कभी कामयाब न होगें (116)
(दुनिया में) फायदा तो ज़रा सा है और (आखि़रत में) दर्दनाक अज़ाब है (117)
और यहूदियों पर हमने वह चीज़े हराम कर दीं थी जो तुमसे पहले बयान कर चुके हैं और हमने तो (इस की वजह से) उन पर कुछ ज़ुल्म नहीं किया (118)
मगर वह लोग खुद अपने ऊपर सितम तोड़ रहे हैं फिर इसमे शक नहीं कि जो लोग नादानी से गुनाह कर बैठे उसके बाद सदक़ दिल से तौबा कर ली और अपने को दुरुस्त कर लिया तो (ऐ रसूल) इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इसके बाद बख़्शने वाला मेहरबान है (119)
इसमें शक नहीं कि इबराहीम (लोगों के) पेशवा ख़ुदा के फरमाबरदार बन्दे और बातिल से कतरा कर चलने वाले थे और मुशरेकीन से हरगिज़ न थे (120)
उसकी नेअमतों के शुक्र गुज़ार उनको ख़ुदा ने मुनतखि़ब कर लिया है और (अपनी) सीधी राह की उन्हें हिदायत की थी (121)
और हमने उन्हें दुनिया में भी (हर तरह की) बेहतरी अता की थी (122)
और वह आखि़रत में भी यक़ीनन नेको कारों से होगें ऐ रसूल फिर तुम्हारे पास वही भेजी कि इबराहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरे कीन से नहीं थे (123)
(ऐ रसूल) हफ्ते (के दिन) की ताज़ीम तो बस उन्हीं लोगों पर लाजि़म की गई थी (यहूद व नसारा इसके बारे में) एख़्तिलाफ करते थे और कुछ शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनके दरम्यिान जिस अग्र में वह झगड़ा करते थे क़यामत के दिन फैसला कर देगा (124)
(ऐ रसूल) तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की राह पर हिकमत और अच्छी अच्छी नसीहत के ज़रिए से बुलाओ और बहस व मुबाश करो भी तो इस तरीक़े से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो इसमें शक नहीं कि जो लोग ख़ुदा की राह से भटक गए उनको तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है (125)
और हिदायत याफ़ता लोगों से भी खूब वाकि़फ है और अगर (मुख़ालिफीन के साथ) सख़्ती करो भी तो वैसी ही सख़्ती करो जैसे सख़्ती उन लोगों ने तुम पर की थी और अगर तुम सब्र करो तो सब्र करने वालों के वास्ते बेहतर हैं (126)
और (ऐ रसूल) तुम सब्र ही करो (और ख़ुदा की (मदद) बग़ैर तो तुम सब्र कर भी नहीं सकते और उन मुख़ालिफीन के हाल पर तुम रंज न करो और जो मक्कारीयाँ ये लोग करते हैं उससे तुम तंग दिल न हो (127)
जो लोग परहेज़गार हैं और जो लोग नेको कार हैं ख़ुदा उनका साथी है (128)
सूरए अन नहल ख़त्म