सूरए अल क़ारिअह मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी ग्यारह (11) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
खड़खड़ाने वाली (1)
वह खड़खड़ाने वाली क्या है (2)
और तुम को क्या मालूम कि वह खड़खड़ाने वाली क्या है (3)
जिस दिन लोग (मैदाने हर्ष में) टिड्डियों की तरह फैले होंगे (4)
और पहाड़ धुनकी हुयी रूई के से हो जाएँगे (5)
तो जिसके (नेक आमाल) के पल्ले भारी होंगे (6)
वह मन भाते ऐश में होंगे (7)
और जिनके आमाल के पल्ले हल्के होंगे (8)
तो उनका ठिकाना न रहा (9)
और तुमको क्या मालूम हाविया क्या है (10)
वह दहकती हुयी आग है (11)
सूरए अल क़ारिअह ख़त्म